भगवतगीता का रहस्य। और सार जो किसी को नही पता

  

जय श्री कृष्णा।


   श्रीमद भगवतगीता का रहस्य। 

नमस्कार दोस्तों आज मैं आपको को एक ऐसा टोपिक लेके आया हुँ, जो 90% लोगो को सायद अभी तक नही पता की भागवत गीता हैं क्या इसको पड़ा क्यों जाता हैं और इसको कैसे पड़ कर motivate होके आगे बड़ा जा सकता हैं ।
तो चलिए आज इसी टॉपिक पे आगे बड़ते हैं।

अगर आज हम किसी से पूछते हैं कि भगवत गीता कौन सी किताब हैं?

तो पता हैं सबका उतर क्या होगा?
की भाई भगतवत् गीता तो हिंदु धर्म की एक धार्मिक गिताब हैं और इसकी पुजा की जाती हैं। और बहुत से लोगो के पास हैं पर बस पुजा घर में ही रखी हुई हैं।

पारतुं क्या आपको मैं आपको सही जंकरी दे दुँ तो ये गिताब किसी धर्म से नही जुड़ी हैं, और ना ही इसको पूजा घर में रख कर इसकी पुजा करने से कोई भी फल मिलता हैं।

सही मायने में भागवत गीता भारत में भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकले ज्ञान से बनी एक ऐसी motivation किताब हैं जिसने एक बहुत बड़े योध्दा अर्जुन को हार मानने के बाद ऐसे motivate किया की एक धर्म युद्ध की विजये हुई,

इसलिए ये किसी भी धर्म से जुड़ी किताब नही हैं इसको कोई भी जो इंसान अपनी जिंदगी से हार चुका हो वो इस पवित्र किताब को पड़ कर अपनी जिंदगी को सवार सकता हैं। क्योकी ये गिताब ये शब्द खुद भगवान श्री कृष्ण जी के मुख से निकले शब्दो के द्वारा लिखी गई है इसीलिए इसमे कोई धर्म का कोई बखान नही किया गया, क्योकी ये धर्म तो इंसानो ने बनाये हैं,

इलिये मैं सभी दोस्तों से कहना चाहता हुँ की अगर ये गिताब आपके पास पहले से हैं, तो उसको पुजा घर से बहार निकले और इसको हर रोज पड़ना शुरू करें, और हो सके तो भगवान के बताएँ रास्ते पर चले और हर कार्य मैं सफल होने का सूत्र पाएँ और अंत में मोक्ष की पायें।

      कुछ मतपुरण श्लोक पड़े।।


1-वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नोरोपणानि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्य
न्यानि संयाति नवानि देहि।।
शलोक का अर्थ:-जिस प्रकार मनुषय पुराने वस्त्रो को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरों को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करता है।




ये शलोक भगवान श्री कृष्ण जी तब कहा
जब अर्जुन ये कहने लगा की मैं अपनों के साथ युद्ध नही लड़ सकता, इनको मार के में नर्क मैं जाऊंगा और इससे अच्छा तो ये हैं की मैं सब त्याग कर संयासी बन जाऊँ। तो केशव जी कहते हैं की शरीर मारता हैं आत्मा तो कभी नही मर सकती ना तो इन सब बातों को छोड़ कर युद्ध करने के लिए प्रेरित किया।

2-नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।




अर्थात:-यह आत्मा न तो कभी शस्त्र द्वारा खण्ड खण्ड की जा सकती है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है। तो हे अर्जुन तु किस बात की चिंता कर रहा हैं, इस शरीर की जो कभी ना कभी तो पंच तत्वों में मिल जायेगा,

इस तरह से भागवत गीता के हर श्लोक में एक बहुत बड़ा अर्थ छिपा हुआ हैं और,

मैं आपको ऐसे ही अच्छे अच्छे शलोको के बारे में बताता रहूँगा और अच्छे से आपको समझाने की कोशिस करूँगा,

और ऐसी अच्छी जंकरी के लिए मेरे ब्लोग को मेल से join करें ताकि जब भी में कोई नया ब्लॉग बनाऊँ आपको उसकी जानकारी मिलती रहे।

दोस्तों कॉमेंट जरूर करें और अगर आपको इससे रिलेटेड कुछ और जानना हैं तो मुझे कॉमेंट करके लिखे में आपके लिए जरूर एक और टॉपिक बनाऊंगा। 

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Thanks

संजीव शर्मा। 





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